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श्री गणेश…….और बस्तर..


By- TNP MEDIA NETWORK…..बस्तर को आदिम सभ्यता का गढ़ माना जाता है बस्तर सदियों से उमा महेश्वर का उपासक रहा है और इसीलिए यहां शिव – पार्वती , गणेश , कार्तिकेय , नन्दी और नागराज की प्रतिमाएं सबसे अधिक पाई जाती हैं शिव पार्वती की प्रतिमाओं को ग्रामीण भैरव , मावली या दंतेश्वरी माता के रूप में पूजते है बस्तर में भगवान गणेश की अनेक प्रतिमाएं मिलती हैं । यहां 3 इंच से लेकर 7 फ़ीट तक के आकार वाली प्रतिमाएं स्थापित है। बारसूर में भगवान गणेश की 7 फ़ीट एवं 5 फ़ीट की दक्षिणमुखी युगल प्रतिमा स्थापित है। ये दोनों प्रतिमा एक ही चट्टान को तराश कर बनाई गई है, जिसमें किसी भी प्रकार का कोई जोड़ नहीं है। बड़ी प्रतिमा के बारे में माना जाता है कि विश्व की यह तीसरी बड़ी गणेश प्रतिमा है छिंदक नागवंशी राजाओं द्वारा दन्तेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर में भगवान गणेश की 5 फ़ीट की प्रतिमा स्थापित की गई है, जो काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई बहुत आकर्षक है।दंतेवाड़ा के ढोलकाल पहाड़ियों पर लगभग दसवीं शताब्दी में 2500 फ़ीट की दुर्गम ऊंचाई पर गणेश जी की प्राचीन दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है यहां घने वनक्षेत्र के बीच पगडंडियों के सहारे ही पहुंचा जा सकता है । इलाके में किवदंती है कि परसुराम और गणेश के बीच यहां हुए युद्ध में परसुराम के फरसे के प्रहार से गणेशजी का एक दांत गिरा था इसीलिए यहां के गांव का नाम फरसपाल पड़ा ढोलकल में विराजी गणेश प्रतिमा एक हजार साल पूर्व छिन्दक नाग राजाओं द्वारा निर्मित है 6 फ़ीट ऊंची ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत कलात्मक है। माना जाता है कि गणेश जी को एकदंत का नाम यही से मिला बस्तर की काष्ठकला में गणेश प्रतिमा और उस पर की गई बारीक नक्काशी का कार्य देशभर में प्रसिद्ध है।

ढोलकल गणेश जी

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