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लॉक डाउन में पूरी तरह लॉक होते सिनेमा घर….

वरिष्ठ पत्रकार और सिनेमा सुधि धीरेन्द्र गिरी गोस्वामी की फेसबुक वाल से…. 3 घण्टे अंतराल के बाद टॉकीज में फ़िल्म का अगला शो शुरू होता था…..लोग लंबी कतारों में लगकर सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के टिकट काउंटर पर एडवान्स बुकिंग करवाते थे…और लंबी कतारों में ही सिनेमाघरों में दाखिल होते थे…दर्शकों की सीटी,हो- हुल्लड़ के बीच फ़िल्म शुरू होती…इंटरवल में सीट न चली जाए ओस भय के बीच बगल वाली सीट में बैठे शख्स या साथ सिनेमा देखने गए मित्र से ध्यान देने विनती करके सँघर्ष के बाद समोसा औऱ पॉपकार्न लाया जाता था…भारतीय सिनेमा के लिए सिनेमा के लिए यह दीवानापन अब यह सुनहरा अतीत बन गया है…पहले मल्टीप्लेक्स सिनेमा ने पारंपरिक को घायल किया,फिर स्मार्ट कह जाने वाले मोबाइल फोन ने बची खुची कसर निकाल दी। जब दर्शक कमर्शियल हुआ तो सिनेमावाले भी अत्याधिक कमर्शियल हो गए। अब नेटफ्लिक्स और ऐमेज़ॉन प्राइम सरीखे ऑनलाइन माध्यम एकाधिकार के साथ सिनेमा का निर्माण और प्रसारण करने लगे है। तब क्यो बन्द न होगी चंद्रा मौर्या टॉकीज….. छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में कई पीढ़ियों के दिलो की धड़कन बनी रहा यह सिनेमाघर अब बन्द हो गया है।संचालक के द्वारा किसी तरह इस धरोहर को बचाने का प्रयास किया गया…लेकिन कोरोना वाला लॉकडाउन इसकी उखड़ती सांस भी ले उड़ा….सिनेमा की महानता उसके दर्शकों के उत्साह उनकी धड़कनों में जीवित है। सिनेमावालो के लिए यह किसी आध्यात्मिक सकूंन से कम नही है….सिनेमा तो युगों से जीवित है युगो तक रहेगा….भले उसको बरसो तक दर्शकों के बीच जगह देने वाले छविगृहो का ख्याल न रखा जाए….यह स्मारक बनकर सदैव चमकते रहेंगे.

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